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- Saturday, February 27, 2021
- पीएचडी वाले डॉक्टर (लघुकथा)
- Phd waale Doctor (Laghukatha) #mohitness
- वर्ष 1998
- वैसे तो संदीप जी की किराना दुकान थी, पर बड़े जुगाड़ू इंसान थे। खुद का पढ़ने में मन कभी लगा नहीं इसलिए 10वीं के बाद दुकान पर बैठ गए, लेकिन समय के साथ पास ही हाईवे पर बने विश्वविद्यालय में उनकी अच्छी जान पहचान हो गई थी। अब दुकान के साथ-साथ उन्होंने उस विश्वविद्यालय में छात्रों के एडमिशन पर कमीशन लेने का काम शुरू किया। कुछ सालों बाद, अच्छे संपर्कों और कुछ घूस के साथ संदीप ने अपनी औसत बुद्धि धर्मपत्नी को डॉक्टरेट की उपाधि दिलवा दी। इस उपलब्धि से उत्साहित होकर उन्होंने अपनी साली, बहन, जीजा को भी पीएचडी धारक बनवा दिया। इन डॉक्टरेट डिग्री के बल पर इन "डॉ" को शिक्षा, अनुसंधान से जुड़े सरकारी विभागों में नौकरी मिल गई। इस तरह संदीप ने कई जानने वालों को फर्ज़ी सम्मान और नौकरियां दिलवाने में मदद की।
- वर्ष 2021
- संदीप की 30 साल की बेटी, हेमा का किसी काम में मन नहीं लगता था। ऊपर से वह भी औसत बुद्धि। अब पुराना ज़माना जा चुका था। वर्तमान में, पीएचडी करने के लिए कड़े नियम लागू थे और इस डिग्री में चयन से लेकर अंतिम शोध लिखने की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं थी कि कोई भी डॉक्टरेट की उपाधि पा ले। इतना ही नहीं, उस विश्वविद्यालय पर भी ऐसे मामलों में कुछ जांच चल रही थीं। संदीप के संपर्कों ने अब जो इक्का-दुक्का जगह उपलब्ध बिकाऊ पीएचडी का दाम बताया वो आम इंसान की पहुंच से बाहर था। फिर इतने पैसे देने के बाद भी मेहनत और समय लगना ही था...जो संदीप को सिस्टम की बेईमानी लगता था।
- एक दिन किसी शुभचिंतक ने संदीप की दुखती रग पर हाथ रख दिया।
- "आपके परिवार में इतने पीएचडी वाले डॉक्टर हैं, बिटिया को भी कहिए...कुछ देखे इसमें।"
- संदीप ने मन ही मन पहले हालात और फिर शुभचिंतक को गाली देकर लंबी सांस ली...और कहा -
- "आजकल के बच्चों में...वह पहले जैसी बात कहाँ?"
- समाप्त!
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- #ज़हन
- Posted by मोहित शर्मा ज़हन at 2:59 PM
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- Labels: Hindi, India, Laghu Katha, Life, Mohitness, society, Story
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